जो साँस बाहर निकली है वह अंदर ले पाएंगे या नहीं उनका भी हमें पता नहीं है । फिर सत्कार्य करने में देर किस बात की ?! जागो, उठो और सत्कार्यों में जुट जाओ, तभी मनुष्यजन्म सफल होगा । लोक-कल्याण के कार्य करनेवालों को ऐसी भावना रखनी चाहिए कि जो कुछ वे कर रहे हैं वह अपने कल्याण के लिए कर रहे है ना कि दूसरों के कल्याण के लिए । सबसे बड़ी प्राप्ति है समर्पणभाव में सदा अखंड मस्त रहना । और वह कब मुमकिन हो सकता है ? जब मनुष्य में सच्ची समज, तात्विक ज्ञान और निष्ठा भरपूर मात्रा में हो । साक्षात्कार की असर समग्र जीवन में फ़ैल जाती है, सम्पूर्ण जीवन को प्रभावित करती है । साक्षात्कारी के जीवन में परिपूर्ण समाधान प्रवर्तमान होता है, वह नित्य तृप्त हो जाता है । जो खुद को,समग्र विश्व का मरजियात देनदार समजता हो लेकिन लेनदार किसीका नहीं; वह संत – वह गुरु । मनुष्य-स्वभाव की विचित्रता तो देखो ! कहेंगे कि – “अगर गंगाजी घर पे आये तो मैं हर रोज उसमे स्नान करूं, लेकिन गंगाजी तो बहुत दूर है, वहाँ पहुंचना कैसे ?” और अगर गंगाजी घर पे स्नान करवाने आएगी तो कहेंगे – “घर पे आये वह गंगाजी नहीं हो सकती, गंगाजी तो हरिद्वार या ऋषिकेश में ही होती है ।”